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Jo phir ek baar Suryakant Tripathi Nirala Kavita

जागो फिर एक बार – प्रसिद्ध Suryakant Tripathi Nirala ji की कविता Suryakant Tripathi Nirala जागो फिर एक बार प्यार जगाते हुए हारे सब तारे तुम्हें अरुण-पंख तरुण-किरण खड़ी खोलती है द्वार जागो फिर एक बार आँखे अलियों-सी किस मधु की गलियों में फँसी बन्द कर पाँखें पी रही हैं मधु मौन अथवा सोयी कमल-कोरकों में? बन्द हो रहा गुंजार जागो फिर एक बार अस्ताचल चले रवि शशि-छवि विभावरी में चित्रित हुई है देख यामिनीगन्धा जगी एकटक चकोर-कोर दर्शन-प्रिय आशाओं भरी मौन भाषा बहु भावमयी घेर रहा चन्द्र को चाव से शिशिर-भार-व्याकुल कुल खुले फूल झूके हुए आया कलियों में मधुर मद-उर-यौवन उभार जागो फिर एक बार पिउ-रव पपीहे प्रिय बोल रहे सेज पर विरह-विदग्धा वधू याद कर बीती बातें रातें मन-मिलन की मूँद रही पलकें चारु नयन जल ढल गये लघुतर कर व्यथा-भार जागो फिर एक बार सहृदय समीर जैसे पोछों प्रिय, नयन-नीर शयन-शिथिल बाहें भर स्वप्निल आवेश में आतुर उर वसन-मुक्त कर दो सब सुप्ति सुखोन्माद हो छूट-छूट अलस फैल जाने दो पीठ पर कल्पना से कोमन ऋतु-कुटिल प्रसार-कामी केश-गुच्छ तन-मन थक जायें मृदु सरभि-सी समीर में बुद्धि बुद्धि में हो लीन मन म

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